Sunday, August 31, 2008

Saturday, August 30, 2008

श्रधांजलि

जब जागो तभी सवेरा

अगर हम परिवार की बात करते हैं तो हम हमेशा से अपने माता पिता और भाई बहिन की ही बात करते हैं। यह सोच हमारी आज की है। आज इतने लोग हैं फ़िर भी हम अकेले है इसलिए नही की हम मिल नही पाते बल्कि हम अपनी सोच मिलवा नही पाते। हमने मकडी के जाल की तरह ख़ुद को उस में जकड लिया है। अब हमारा वही एक मात्र दायरा रह गया है।

आज परिवार में सिर्फ़ चार लोगो से परिवार नही होता , परिवार तो आपसी समझ से होता है , आपसी मेल से जिससे आप एक दुसरे को समझ सके। हम क्यों कभी कभी अपने परिवार से दूर हो जाते है? क्यों जब वही परिवार पास होता है तो हम उसकी कदर नही कर पाते हैं , वो रिश्ता कुछ अधुरा सा लगने लगता है। इस की एक मात्र वजह "आपकी सोच " है । यह तो हमे ख़ुद ही देखना है की हमे रिश्तों की समझ है भी या नही। जीवन जीना कोई बड़ी बात नही। अपने अपने जीवन में सब मस्त है पर परिवार के प्रति भी एक सोच की आज जरुरत है।

मैं भी चाहता हु मेरे परिवार में भी वो सारी खुशियाँ हो जो हमे एक दुसरे से जोड़ी रखे। परिवार का हर व्यक्ति एक कड़ी के समान हो। कभी कभी मन् बहुत दुखी भी होता है, जब कोई रिश्तो में दुरिया बना लेता है। जो आज हमे छोड़ गए, उनकी तो बस याद है पर जो आज पास होते हुए भी दूर है उनका क्या?

हम सब को खुश करना जानते है, पर हम ख़ुद को खुश कब कर पायेंगे। कभी ख़ुद से बात करना, जवाब आपको ख़ुद ही से मिलेगा। बोझ को मत ले कर चलो, ये आज नही तो कल गिरा देगा। जिस दिन हम समझ जायेंगे की हम को परिवार की जरुरत है परिवार को हमारी नही उस दिन शायद हमे परिवार का मकसद समझ आएगा। परिवार एक पेड़ की तरह है, हम जितने भी बड़े क्यों न हो जाये, हमे सँभालने वाला हमारा परिवार ही है, जो तने की भांति हमे पूरी तरह से आश्वस्त रखता है की गगन की उचाईयो तक बढता चल। उनके कुछ विचार हमे फूलो की तरह सुगन्धित रखेंगे तो कभी मुरझाए फूलो की तरह कंही गिर जायेंगे। इन्ही सुविचारों का शुभ आशीष हमारे अन्दर संस्कार बन कर जन्म लेता है, जिनसे हम जगत में ख्याति पाते हैं।

संस्कार ख़ुद से नही परिवार से ही हमे मिलता है। हमारे संस्कार ही हमे रिश्तों का ज्ञान देते है। आज जब परिवार ही नही होगा तो संस्कार मिलने का सवाल ही नही। मुझे निराशा इस बात लगती है जिस ख़ुशी को हम बाहर तलाश करते हैं वो कंही और नही हमारी एक मात्र सोच में है। जिस दिन हमने अपनी मनोदशा बदल दी, उस दिन हमे गर्व होगा की हमने इंसान होने का पूरा दाइत्व निभाया। हमने जितना हो सका अपने से लोगो की मदद की क्योंकि अछे कर्मो का फल सिर्फ हम ही नहीं हमारा पूरा परिवार भोगता है। महान बातो से इंसान बड़ा नहीं बनता, बड़ा बनता है बड़ी सोच से और नेक विचार से - "बड़े हो के बड़े बने रहना यह बहुत बड़ी बात है।"

हमारी वास्तविक शिक्षा हमारे परिवार से शुरू होती है बस हम ही है जो खुद को परिवार से क्या समाज से ऊपर समझने की भरी भूल कर बैठते हैं। मैं क्या हु, पहले मुझे यह जानना है। जिस दिन ये ज्ञात हो गया, हम पूर्ण रूप से एक कुशल परिवार का और एक कुशल समाज का निर्माण कर सकेंगे। बस थोडा स्वयं में झाकने की देर है.
जब जागो तभी सवेरा...

Friday, August 29, 2008

अपनों का साथ

परिवार अगर खुश तो हम भी खुश। हम परिवार के लिए क्या से कर दे वो भी कम ही है। हमारी पहचान तो हमारे परिवार से ही है। मेरे जीवन में भी मेरे परिवार का बहुत महत्त्व है। वैष्णव देवी जी की यात्रा एक जीवंत उदहारण हैं। बहुत दिनों के बाद एक पारिवारिक मिलन हो पाया, जब हम सब अपने काम काज से दूर माता के दर्शन करने गए। हम सब अपने जीवन की पहली यात्रा किए जिसमे रोमांच भी था, एक प्यार भी और अपनों का साथ भी। आज सब कुछ सम्भव है बस एक नेक सोच की जरुरत है और वो आपसी प्यार से ही आ सकती है। भगवान् का आशीष ही था और हमारे मौसा जी की एक पहल जिसने बहुत ही सुंदर अनुभव कराया।

जब सोच अच्छी तो उसका परिणाम तो अच्छा होता ही है। यात्रा तो कुछ रोज की थी पर उस यात्रा के दौरान मिली खुशियाँ अदभुत थी। आज भी मानो अपने परिवार के साथ ही घूम रहा हु, मेरे गलियारे की यही तो खासियत है। जब चाहो तब उन् पलों के साथ घूम के आ सकता हु , कुछ ऐसी ही मस्ती की हमारी अप्पू ने, जिसका पूरा वर्णन मैं बिना कैंची चलाये यंहा पोस्ट कर रहा हु. मन् ताजा हो जाता है.



-----------------------Those जय माता दी days of my life!!!
Foreword

The statement “If your life is worth living, it is worth writing” and my brother Ankur Sharan has inspired me to write the whole experience of our Vaishno Devi darshan, in a form of an interesting journey of words. Hope you enjoy reading it, as it had my great efforts writing.

“The art of life is to know how to enjoy a little and to endure very much.” There is so much to love and hate in my life, and so is this live through no exception. There are characters to love, characters to hate, characters we love, characters we hate, characters we love and hate at the same time, and characters we love to hate. I can’t think when I’ve ever seen such a varied and more enjoyable cast of superstars (cum villains)!!



Lets have an Intro...
To begin with let me first introduce you with the cast and crew of our trip:
· Mrs. Indira Prasad, the eldest of all, our great NANI.
· Mr. Satyanarayan Shrivastava (Sattoji), the eldest mousaji, a great persona.
· Mrs. Pushpa Shrivastava (Babyji), his better half and our favourite mousi.
· Mr. Ajay Sharan (Ajayji), one more mousaji.
· Mrs. Sudha Shrivastava (Ruby), our mousi not to forget DILLI wali mousi.
· Mr. Shailendra Saran (Shailu), the organizer of this trip, and my supercool dad of course.
· Mrs. Seema Saran (Tunni), my mom and the youngest of all three sisters (a spoilt brat, seriously).

ये सब तो बड़े थे now let me introduce the बच्चा gang……

· There is Mr. ADB (आदम खोर भालू), now transformed into Swami Narayan bhakt, also named Ankur (मिट्ठू).
· There is “hey LOUI!” with his murderous sense of humor, Pratul (चीकू).
· Next had to be the chatter box Prateek g, better known as Jimmy but he couldn’t join us as he had his MBA classes (but let me make a note that we all really MISSED him!).
· There also is our very own Miss. Dentist, oops I mean Dr.Ekta (Lily di).
· Then comes my dear sissy, Shivani (rather called Shaab ji, I don’t know for what reason but people do call her this).
· There is lastly me Apoorva (अप्पू), youngest of all and not forget the author of this journey!!

Following was the schedule of our tour:
Start Day:
· Reaching Jammu: 12th June at 16:10
· (Stay at Jammu have been arranged)
· 12th June Local site seeing of Jammu
Day One:
· Proceed to Katra: 13th June at 06.00 AM ( by Taxi/Bus)
· Reaching Katra 13th June at 08.00 AM
· Proceed to Mata Vaishnodevi 13th June 9.30 AM. (By Helicopter ticket reserved for 12 person)
· Darshan Mata Vaishnodevi 13th Jun (Semi VIP Darshan for Helicopter visiters)
· Back to Katra via Bhairavji, Ardhkunwari and others 13th June ( By walk)
· Stay at Katra 13th June Night (stay at Trikuta Bhawan booked for 13th June)
Day Two:
· Proceed to Jwalaji, Chitpurna, Kangra, Chamba, Dharmshala, Mcleodganj 14th June ( by Taxi)
· Stay at Dharmshala, Mcleodgan 14th June Night (Hotel Cloud End Villa, Family Cottage have been booked).
Day Three:
· Local Site Seeing at Dharamshala & Mcleodganj 15th June 7:00 AM.
· Return to Jammu 15th June Evening ( Stay at Jammu 15th Night Booked)
End Day:
· Return to New Delhi 16th June2476 SARVODAYA EXP 11:15 AM.

Special conditions to be folloooooooooowed while on tour:
1. Sleep Less: (a person will not be allowed to sleep more than 5 hours that is only in nights)
2. Eat Less (please do not eat much otherwise you have go for shit more)
3. Bath Less ( save water and time for three days, dry clean yourself )
4. Anger Less ( NO GUSSA on BIBI /BACHCHE otherwise a fixed penalty of Rs.500/ per incidence)
5. Baggage Less: you have to hold your own baggage no coolie will be allowed to carry it. It also occupies space in Taxi/Car.
6. Purchases: NO purchases are allowed on tour as everything is available at your town.
7. Enjoy More: Talk, walk, laugh as much as you can.
“As is a tale, so is life: not how long it is, but how good it is, is what matters.”
Now since the carpet has been laid, curtain undraped, cast introduced and cams along with handy cams ready so let’s begin with the voyage.

Since every story has a history so let me take you back to where this thought of all of us going together to Mata Vaishno Devi set off?
Not long back just a month ago, 14th May I had my CG-PMT in Rajnandgoan, where dad proposed to plan a trip to Vaishno Devi for all of us, i.e., all 3 mousi’s with their families. Everyone said ‘yes’ but nobody expected it to happen so soon. Destiny is not a matter of chance; it is a matter of choice. It is not a thing to be waited for; it is a thing to be achieved. Anyway जब माता का बुलावा आता है तो जाना ही पड़ता है!!

जय माता दी!!
जय माता दी!!
जय माता दी!!जय माता दी!!


Appu You Rock

एक ख्वाहिश


एक जिंदगी में लोग क्या क्या कर लेते हैं , ये सवाल हमने ख़ुद से नही तो औरो के प्रति तो जरुर ही कभी सोचा होगा।

मैंने यह सवाल किसी और से नही ख़ुद से किया, की मैं आख़िर कर क्या क्या सकता हु? एक ख्वाहिश जगा राखी थी मन् में। तो मानो भीतर से आवाज आयी, बहुत कुछ बस जो दिल से चाहो उसे अपना लो। एक अंतर्मन से निकली आवाज ही मुझे मेरे सबसे गुणी साथियो से मिला पाई। मेरा "अंतर्ध्वनि" !


यह एक संयोग ही कह ले, की साथी मिलते रहे कदम पे कदम बढ़ते गए। एक दिल में खोज हर किसी को कुछ न कुछ पाने की होती है। मेरी भी थी एक सपने की जो मेरी तरह और भी देखते हो। मेरी तरह और भी महसूस करते हो। एक वो दिन था और एक आज का, मुझे वो साथी मिले जिनकी बदोलत मै आज अपने एक सपने को जी पा रहा हु। हमारा sangeet का सफर अपने नए राह पर निकल रहा है.

कोशिश यही करता हु की अधिक से अधिक समय अपने सारे सपनो को पुरा करने में लगाऊ। मेहनत तो होती ही है पर एक अनजाना सुकून मिलता है जब हम सब एक साथ अपने अंतर्ध्वनि से एक सुरीला माहोल बना दिया
करते हैं।
अब तो बस एक जूनून सा सवार है, अपने इस जूनून को दुनिया के सामने रख दू।
राह कभी आसान नही होती वो
तो मंजिल पाने तक मशक्कत करनी पड़ती है। हम सब वही कर भी रहे है, तभी शायद आज हमे एक पहचान मिल रही है। छोटे छोटे सपने अब पूरे से हो रहे है।
एक ख्वाहिश जगा राखी थी, बस उसे ही पुरा करने का जूनून है।
हमारा तो बस यही मानना है, अगर ख्वाहिश है तो उसे पुरा करे बिना बैठो नही। हम कोई सितारे नही मगर आसमान की उचाईयों का सफर अब जान गए हैं। एक सोच आपकी दुनिया बदल सकती है।


एक बार ख्वाहिश पुरी जब होती है तो उसको शब्द दे पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है। हमारा दिल्ली विश्विद्यालय से जो सफर शुरू हुआ वो आज टीवी, रेडियो और अब तो इंटर नेट पर होता चला आ रहा है और अभी बहुत आगे तक जाना है। यह भी एक ख्वाहिश है और इसे पुरा करने की हम सब सम्भव कोशिश कर रहे हैं। अगर आसान नही तो नामुमकिन भी नही है, अब तक सुनते आए थे, अब देख भी लिया।
एक ख्वाहिश ही तो है.....

Thursday, August 28, 2008

शुभकामनाये

आओ हम सब मिलकर नाचे और गाये, हमारी अप्पू की सालगिरह है,
सालगिरह हो तुमको मुबारख सब की है तुम को दुआएँ ।
बचपन में कभी गाया करते थे....


आज मेरी सबसे प्यारी बहन का जन्म दिन है, मैं तो नही पर मेरी शुभकामनाये हमेशा से उसके साथ है।

प्यारे तो सभी होते है, पर कुछ उन् प्यारो में से सबसे प्यारे प्यारे होते है। तो क्यों न इस खास दिन को कुछ और प्यारे शब्दों से सजा दे। यह पल हर एक के लिए बहुत मायेने रखता है और हमारे गलियारे के लिए इससे बढ़कर और क्या! अभी वो केक काट रही है और मैं अपने गलियारे में बैठा मीठे मीठे एहसासों का स्वाद चख रहा हु।



शुभकामनाये
कितना अनोखा होता है ना ये पल,
हमारी खुशियों में एक सुरीला साज छेड़ जाता है।
जिसका संगीत हमारे कानो में नही,
बल्कि हमारे रूह में समां जाता है।
यही तो एहसास है,
जो हमे अपनों की और परायो में अन्तर सिखाता है।
रिश्तो की एहमियत क्या होती है,
बस एक पल में यह दिल समझ जाता है।
तुमने भी तो महसूस किया होगा,
क्यों इंतजार यह दिल अपनों का करता है।
एक शुभकामना अपनों से लेने को,
चुपचाप यह दिल आस लगाये बैठा रहता है।
यही तो वो एहसास है,
जो तुमको भी अब तक रोशन रखा है।
हम पास नही तो क्या हुआ,
राखी का स्वाद भी मिठाई बिना हमने चखा है।
खुश रहो हर पल ऐसे ही,
यही तो खुशियाँ जन्म दिन हमे देता है।
बना डालो यह दिन अपना रोशन,
यही तो अभी और जीने की प्रेरणा देता है।

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गलियारे में रह कर ख़ुद से बात करना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि मेरे गलियारे में मैं अकेला नही। मेरे कई साथी, कई चेहरे आज भी नजर आते हैजन्म दिन ही तो एक ऐसा पावन दिन है जो हमे जीवन के और समीप ले आता है। कल तक बचपन के दिनों को छोड़ कर आज यह हमे बढ़ते रहने की राह दिखाता है। लाखो की भीड़ में यह उन् चेहरों को अलग करता है, जो वाकई में आपके जीवन में कुछ एहमियत रखते है। जो आप की हर खुशी में शामिल होते है। दोस्त, परिवार जब सब आपके साथ होते है तो शायद इससे बढ़कर और क्या शुभकामना मिल सकती है हमे। यह परिवार, ये हमारे लोग ही तो हमे ख़ुद पर यकीन करना सिखाते है। इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसका हौसला और उसका एहसास है। हमारे हौसले ही हमारी कोशिशों में झलक जाते है । हर सपना सिर्फ नींदों में नहीं, कुछ हमारे गलियारे में भी पूरा होता है। तुम आशा रखो, मैं कोशिश करूँगा कुछ और सपने पुरे करने की.................













Tuesday, August 26, 2008

ख़ुद पर यकीन

हम कई बार बिना सोच विचार के ही अपना रास्ता ख़ुद ही इख्तियार कर लेते है। चाहे वो हमे अपनी मंजिल के नज़दीक ला रहा हो या कोसो दूर धकेल रहा हो, हमे तो मानो इस का कोई फरक ही ना पड़ता हो। मगर फरक पड़ता है, इसका अंदाजा हलाकि उस समय नही पड़ता पर, एक समय तो एहसास हो ही जाता है।


हमारा गुस्सा हमारी इन्द्रियों को वश में कर के नाजाने हम से
क्या क्या ऊल जलूल बातें निकलवा देता है, तब हम शायद उस समय उस शब्द का वास्तविक स्वरुप नही समझ पाते, और अपनी झुनझुलाहत्त को किसी भी तरह निकाल देना चाहते है। हम अपने जीवन बहुत sa सुखद pal खो देते है। कई मानो में वंहा हमारी जीत हो जाती है, पर हम जीत कर भी कोई खुशी नही महसूस कर पाते। आज हम सभी तनाव के शिकार हैं, सब की अपनी परेशानिया है। निराशावादियों की माने तो जिंदगी का दूसरा नाम ही परेशानी है।

अब परेशान व्यक्ति ना ख़ुद खुश होगा और ना ही दुसरो को रख सकेगा। खुशी क्या है यह आज बहुतो को नही पता। है ना ये भी एक परेशानी की बात। जिस चीज को हम खोज रहे है, हमे ख़ुद नही पता की हम क्या खोज रहे है और क्यों खोज रहे है क्योंकि जो चीज हमारे भीतर में है, उसे हम बाहर से कैसे प्राप्त कर सकते है।

आज सबसे बड़ी भूल हम यही करते है, की हम ख़ुद से duur होते ja रहे है। हमे नही पता हम क्या करना चाहते है। हमे नही पता जिस चीज को हम अपने जीवन में shaamil करना चाहते है, वो हमारे लिए उचित भी है या नही।

ऐसे कई sawal हमे humesha से घेरे रहते है और हम है की बस panno की तरह, jevan के दिन palte जा रहे हैजिनको इतिहास बनाना था वो तो banaa दिए। अब हमारी bari है। हमे khud पर यकीन करना होगा, हमे ख़ुद की एक अलग पहचान banani होगी। हमे ख़ुद से उन baato को puchna होगा, की हमारा दिल और हमारा मन क्या कहता है।

जब आप ख़ुद से बात करना सीख लेते है, तो ख़ुद-ब- ख़ुद आपको अपने सही ग़लत का अंदाजा हो जाता है।दुसरो के गिरेबान में झाकना बेहद आसान है, बस गिरेबान में झाकने की हिम्मत किसी किसी में ही होती है। शायद यही जिंदगी के सुलझे उन्सुल्जे पहलु है, जिन पर हमारा ध्यान बहुत देर बार जाता है। कुछ मुह से कह देते है तो कुछ जीवन की आशा बनाये रखते है की सब कुछ ठीक हो जायेगा।

मैं भी उन् दुसरे लोगो में से हु जो आशा का साथ हमेशा रखते तो है पर आशा से अधिक कोशिशों में विश्वास रखते है। ख़ुद कुछ भी नही होता, आप की लगन, आपकी सकारात्मक सोच ही आप का पथ निर्धारित करती है।



जन्माष्ठमी ...

याद है मुझे किस तरह हम बचपन की जन्माष्ठमी को खूब धूम धाम से मानते थे। मिट्टी के खिलोने से अपने लड्डू गोपाल का जीवन दर्शाते थे। तब की फोटो तो नही पर आज भी कुछ छवियाँ मन् में तारो ताजा है।अच्छा लगता है, जब अपने यादगार लम्हों को समेटे रखना।

मेरे लिए हर त्यौहार का पना महत्त्व है। ये बचपन की आदतें कह ले या फ़िर वो संस्कृति जो आज भी मेरे संग चली आ रही है। मेरे गलियारे की यही तो खासियत है, हर मोड़ पे एक नया सपना एक नयी चाहत लिए चलता रहता हु।
बचपन की याद ताजा हो तो बचपना करने में भी अलग मजा आता है, कुछ इस तरह मैंने लड्डू गोपाल का जन्म दिन मनायाअपने घर के पास बने मन्दिर में खूब सारे लाल गोपाल के साथ मस्ती की। ये लाल पीले कुछ अधिक ही प्यारे लगे।
अपने जीवन में सब को प्यार चाहिए और ऐसे अवसर पर जो प्यार स्नेह आप को मिले उसे अपना लेना चाहिए। त्यौहार ख़ुद कुछ भी नही वो तो आपका जीवन के प्रति utsah jhalkata है।
हाथी- ghoda paalki, जय Kanhaiya लाल की.....

जय श्री कृष्ण...

Friday, August 22, 2008

अंतर्ध्वनि के सितारे




कुछ दोस्त जीवन में बहुत प्यारे होते है। अंतर्ध्वनि ने मुझे तो मेरे जीवन की एक प्रेरणा सिखा ही डाली।
चार दिवारी के बाहर की दुनिया कुछ और ही होती है, जब तक बाहर नही आते वो तो बस आपके चादर जितनी जान पड़ती है।


आज मैं अपने काम काज के अलावा अपने संगीत पर भी काम करता हु। सप्ताह के अंत में अपने इन् दोस्तों के साथ खूब musical
मस्ती भी करता हु। कभी कोई धुन्न तो कभी कोई...


आज हम अपने गानों पर भी ध्यान दे रहे है। अपने भावनाओ को, अपने संगीत के द्वारा दुनिया तक पहुचाने की पुरी कोशिश कर रहे है। भगवान् की मदद से, काफी सफलताए भी मिल ही रही है। हमारे संगीत को और हमारे अंतर्ध्वनि को लोग पसंद भी कर रहे है। इस बात से हम सब का हौसला भी बढता है। हमने जिसे सोचा, उसे करने की भी ठानी है। हर गाना, सिर्फ़ गाना नही बल्कि एक संदेश है, एक सोच है और एक जज़्बात है।


हम सब एक है क्योंकि हमारी अन्तर आत्मा की आवाज एक है, हमारी सोच अलग हो, पर संगीत एक है और रहेगा। शरीर अलग होते है, पर अन्तर आत्मा की आवाज एक है।

सबसे अनोखी बात यह है की, हम सब ख़ुद नही जानते की हम क्या कमाल कर सकते है। पर ख़ुद का बनाया गाना सुनकर एक जोश सा बन जाता है। कुछ कर gujarne का एक जूनून, जो शायद हम सब में है। हम समय के मोहताज नही, क्योंकि हमने ख़ुद को समय के अनुसार ढाल रखा है।

सपने पुरे होने के लिए सबसे जरुरी है, सपने को समझना। हमने ख़ुद को समझा, अपनी गलतिया समझी। वक्त आने पर उनसे सबक लिया और आगे बढ़ गए। मैंने ख़ुद के अन्दर एक परिवर्तन देखा है । मैं अब संगीत से बढ़ कर और दोस्ती से ज्यादा किसी चीज को एहमियत नही देता। मेरे संगीत के दोस्त ही मेरे दोस्त है। हमारा सूरज भी उग्ग रहा है, और हमारी ख्याति भी दूर तक पहुच जायेगी।

यह हमारी लगन और हमरी सकारात्मक सोच का परिणाम है। आज मेरे गलियारे के हर तरफ़ अंतर्ध्वनि के ही सितारे नज़र आते है।













"कब हम बड़े हुए "

कौन कुण्डी खोलने वाला है....

दरवाजे पर लटकी कुण्डी ने,
देखा है उस बचपन का प्रवेश.
जिसे हम छु भी न पाते,
बस उचल के, उसे निचे गिराते.
अगर खुल गयी वो मानो ,
तो वह क्या सौन्दर्य पल दर्शाता था।
होली दीवाली का वो पर्व,
मनोहर गुल खिलाता था।
वंही किसी के खासने की आवाज
आया करती थी!
डिबरी के जलते मंद प्रकाश से,
हर शाम उजियारी होती थी।
बारजे से उन् आँखों ने,
इंतज़ार का पल भी देखा था।
कभी बजती थी घंटी पूजा में,
चोके से धुआ यंहा उठता था।
आज वक़्त के इस खेल ने,
ये काहा ला कर हमे खडा किया।
बचपन के वह मद मस्त दिनों को,
आज फिर से जिवंत करा दिया।
सो गयी वे आँखे, बुझे धुए।
ना कोई चहकने वाला है,
कब हम यू ही बड़े हो गए,
अब कौन कुण्डी खोलने वाला है....

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बचपन तो गलियारे में खड़ा है....

इलाहाबाद में गुजरे बचपन के कुछ पल हमेशा से मेरे दिल के बहुत करीब रहे है। हमारे बचपन का वो सुखद लम्हा भी तो वही से शुरू हुआ था। हमारे जीवन में अपने परिवार के अलवा कुछ भी प्यारा ना था और ना हुआ, शायद वो हमारे बाबा, दादी का प्यार ही था और शुभ आशीष जिससे हम दूर रह कर भी हमेशा अपने परिवार से जुड़े रहे। आज भी वो प्यार तो है, पर वो हाथ नही जो अब कभी हमारे सर पर रख कर आशीर्वाद दे सके।

काफी हृदय विदारक द्रश्य था जब मैं अपने पुश्तैनी घर में गया, तो मानो बचपन की वो हर यादे ताज़ी हो गयी, अपने उन् अनुभवों को शब्द देने की एक कोशिश की है। न जाने कुछ लोग क्यों साथ रह कर भी दुखी हैं तो कुछ किसी का साथ छोड़ जाने से दुखी है...

आज हम सब बड़े हो गए है, वो घर, वो गली, वो गलियारा, वो आँगन सब अब अतीत में कंही खो गया है, और यूँही कभी कभी झांक कर मुझे वापस बचपन के गलियारे में बुलाता है। हम बचपन के उस दौर में लौट तो नही सकते पर अपने इस गलियारे में रह कर भी उसे देख तो लेते ही है। आज भी दादी पूजा में और बाबा बारजे में खड़े मुझे दिख रहे है......

हर पल ख़ास है, और हर ख़ास पल ही जीवन।

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Tuesday, August 19, 2008

गलियारों की सैर



गलियारों की सैर,
कोई कल्पना नही बल्की मेरे वो मन के भाव हैं, जिन्हें मैंने महसूस किया है।
गलियारों की सैर, एक ऐसा निर्मल भाव प्रस्तुत करती है...
जिसे जान कर, समझ कर आप भी अपने गलियारों में लौट जाना चाहेंगे!
गलियारा एक ऐसा रास्ता जो घर से होता हुआ हमें अपने चार दिवारी से निकालकर घर के विभिन्न हिस्सों से मिलवाता है. बचपन के ऐसे ही गलियारों से होता हुआ आज मैं,
अपने कई जीवन के पहलुओ से मिल पाया.
कभी हँसा भी तो कभी रोया भी, कभी मस्ती हुई तो कभी शरारत भी।

जीवन के ऐसे ही हरे पीले मनमोहक गलियारों से होता हुआ मैंने बहुत से पल ऐसे गुजारे है, जिन्हें मैं अपने आप से एक बार फ़िर मिलाना चाहता हु और इसी बहाने, अपने जीवन से निकल कर बीते दिनों की सैर कर आना चाहता हु। मैं तो हु ही अंकुर, रोज फुटूगा और रोज नए फूलो के साथ अपने गलियारे को मेह्काऊंगा ।


-अंकुर
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