Saturday, March 12, 2016

World Cultural Festival - 2016


विश्व सांस्कृतिक महोत्सव का भव्य आयोजन हमारे भारत का दिल कहे जाने वाले राज्य दिल्ली  में आयोजित तो हुआ पर इसकी गूंज हमारे दिलो के साथ ही विश्व भर में सुनी जा सकती  है।  

हर एक कलाकार के लिए सपना होता है की वो ऐसे मंच पे अपने कला का प्रदर्शन करे जिससे उसकी कला - कौशल की सराहना हो और उसकी प्रस्तुति लोगो के दिलो दिमाग में छा जाए , कुछ ऐसा ही सोच ले कर करीब हम विश्वभर के 35,000 कलाकार एक पारिवारिक समारोह की भांति,  विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के  प्रांगण  में पधारे और हमने एक समूचे विश्व को एक परिवार का रूप दिया - "वसुदेव  कुटुंबकम "

यह आयोजन किसी व्यक्ति विशेष को या धर्म- जाति , राजनीति से ना जोड़ कर यदि हम एक इंसान और इंसानियत की भाषा से समझे तो हम पाएंगे की आज विश्व में
जितनी ईर्ष्या भाव, आलोचनाओं का चलन  तेजी से पनप रहा  है वो हमारे मन मस्तिष्क को कुंठित कर रहा  है, हम खुद को बढ़ाने  के बजाए  दुसरो को गिराने में ज्यादा विश्वास करने लगे है  ।  लोहा जितना मजबूत क्यों न हो, उसे उसका अंश "जंख् (Rust ) " ही उसे मिटा देता है, हद से ज्यादा आलोचना और ईर्ष्या हमे ही खोखला बना देंगी, आज भी हम "Social  Networking " के माध्यम से जुड़े है पर एक हद , एक दायरा तो तय करना ही पड़ेगा - कंही ऐसा न हो, की  "Forward" सोच रखने वाला हमारा समाज कंही Fast  Forward  हो कर ही न रह जाए, समय की सदुपयोग करना और नए विचारो पर कार्य करना आज की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे आज इस महोत्सव के तहत हम सब ने जिया ।  कुछ भी करे, जो आपको अच्छा लगे, जो आपकी अपनी सोच को बल दे , फिर उसे एक आयाम दे, मन को सुखद अनुभव होगा और मन प्रसन्न तो सब कुशल ही कुशल । 

सत्य तो ये है की हम में से ज्यादा तर लोग  अपनी शक्तियों का आंकलन करना ही भूल चुके है, कुछ लोग इतने गरीब है की उनके पास रोटी से ज्यादा कुछ नहीं और कुछ इतने ज्यादा गरीब है की उनके पास पैसे के अलावा कुछ नहीं ।  


कला और कला की समझ रखने वाली  हमारी पीढ़ी विलुप्तता की कगार पे है और हम ही नहीं हर व्यक्ति को अपनी संस्कृति , सांस्कृतिक धरोहर को अपनों के बीच उजागर करते रहना चाहिए और उसी का जीता जाता उदाहरण  विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में हुआ, आज भी कितने परिवार ऐसे धरोहर को अपने साथ संजोय हुए है। 1700 कत्थक, 1700 भरतनाट्यम  नित्रयांगनाओ ने जब एक साथ थाप ली तो मानो  ब्रम्हांड हिल गया , हजारो की तादात में जब नगाड़े, वाद यंत्र  बजे तो मानो बादल ही फट पड़ा, ओले और बारिश के फुहारों ने मानो सोच रखा था की आज तांडव मचा ही देंगे, पर होनी को कौन रोक सकता है - विश्व में आज एक इतिहास जो रचने जा रहा था , अटल विश्वास के साथ सम्पूर्ण कलाकारों ने एक जुटता  का प्रदर्शन किया - बादलो के गरजने से, हम कलाकारों के  ने अपने मनोबलो को गिरने नहीं दिया और काले बादल के पीछे से जब  चमकती सूर्य की वो छठा आयी, मानो सब के चेहरों पे पुनः बहार आगयी ।  बस फिर क्या था, एक साथ ध्वनि का शंखनाद हुआ तो फिर वो गूंज यमुना के तट  से आकाश तक सुनी जा सकती थी और उसकी अदभुत प्रसन्ता हम सब के चेहरों पर भली  भाति थी  । 

यह मात्र एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर हमारी ख्याति है जो ये विश्वास दिलाती है की भारत का मूल मंत्र  ही - सांस्कृतिक धरोहर है जिसे  पैसे से कभी तौल नहीं जा सकता, ओछी राजनीति से उचे उठकर  हमे नव युग का पुनः निर्माण करने की परम आवश्यकता है । कार्यक्रम के दौरान एक बात प्रशंसनीय रही की हर एक व्यक्ति विशेष ने अपना कार्य समूर्ण कटिबद्धता से निभाया, कलाकारों ने कला के माध्यम से, तो अभेद security  और कार्यकर्ताओ ने अपनी चौकसी से इसे सफल बनाया । 

 आज हमारी इतनी हैसियत है की विश्व के 150 से ज्यादा देशो ने हम में दिलचस्पी दिखाई और हमारे प्रांगण में अपने कला को प्रदर्शित किया । 

विश्व सांस्कृतिक महोत्सव  वो आग़ाज़ और ऐसा समावेश बना की लाखो मन हर्षित हो गए , और करोणों निगाहो ने इसे website और news में जीवंत होता देखा । हमने पुनः एक  इतिहास रच दिया, ये कोई एक कलाकार  की नहीं, हम उन सब की जीत की कहानी है जो अपने बुलंद हौसलों से दुसरो को भी हौसला देते है और यही सिलसिला हम परस्पर प्यार और सदभावना "वसुदेव  कुटुंबकम " के माध्यम से जन -जन तक पहुचने में सक्षम रहे है ।  कला की सराहना और उनका आदर ही एक सफल समाज की कुंजी है, अपने अनुभवों को हम से बांटे  और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे से आगे बढ़ाएं । 

धन्यवाद 
अंकुर शरण