Tuesday, June 22, 2010

सोच के भी रूह काप जाती है, जब आप मौत के बारे में सोचते है। कुछ ऐसी ही घटना भोपाल में भी घटी होगी। शायद तब मैं इतना समझ नहीं सकता पर हाल में इस त्रासदी को जिस ढँग से पुनः प्रस्तुत किया वो हमारे देश की एक बहुत ही शरर्मनाक रूप दर्शाता है।
"अतिथि देवो भवः " तो ठीक है पर हम इतने मजबूर क्यूँ हो जाते है की कोई भी आये और हमारी भावनाओ के साथ खेले, हमारे जीवन के साथ खिलवाड़ करे और फिर यही हम में से कोई गैर ज़िम्मेदार