Saturday, January 9, 2010

"चाहत की उड़ान"

2०१०, एक ऐसा साल जो कई सपनो और उची उड़ानों का साल है। बहुत से परिवर्तन देख चूका हु और देख रहा हु। आशा करता हु की वो सब काम पुरे होंगे जो मैंने देखे है।
बहुत दिनों बाद आज खुद के गलियारे में जाने का मन् किया, शायद कुछ खट्टे मीठे अनुभवों को इसी बहाने याद कर लिया करूँगा।
२००९ चला गया और बहुत कुछ दे गया।
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चाहत ही है,
जिसने जीना सिखाया है।
चाहत ही है,
जिसने इन मौसम को महकाया है।
पर चाहत को चाहते रहना,
हम किस्से समझ सकते है?
चाहत की चाहत में,
बस सपनो में क्यूँ खोये रहते है?
चाहत कंही दूर नहीं,
वो तो मन के गलियारों में रहती है।
अगर समय हो अपने से मिलने का,
तो वो अपने दिल में बस्ती है।

चाहते तो हम बहुत कुछ है। हम सब को इश्वर ने भेजा है - अपने बनाए हुए इस घरोंदे में जिसे हम अपना मान कर आराम से बैठ जाते है, और भूल जाते है की हमारा भी कोई मकसद है। हम जो देखते है, उसी से सीखते है। हम ने अपने आप को अपने से दूर कर लिया है, शायद तभी खुद की चाहत से दूर होते जाते है और वो करते है जो हमसे करवाया जा रहा है।
फिर उस मकसद का क्या, जो इश्वर ने हमारे लिए सोच रखा है। जियो और एक दिन अलविदा कर के चल दो- ये तो किसी ने नहीं सिखाया फिर ये विचार कहा से आगया?
अपनी चाहत को अपने साथ रखना है, तभी हम खुद को संभाल पायेंगे वरना हम कभी भी भटक सकते है। हमे दुसरो की उतनी ही जरुरत है जितनी खुद की पर आज हम दुसरो पर इतने आश्रित हो जाते है की अपनी चाहत से परे होते जा रहे है। खुद को यकीं दिलाना है, की हमारा अस्तित्व अकेले नहीं बल्कि सब के साथ है।
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