Wednesday, July 20, 2016

गुरु प्रणाम संगीत समारोह


परमार्थ फाउंडेशन द्वारा आयोजित गुरु प्रणाम संगीत समारोह दिनांक 18 जुलाई 2016 को इंडिया हैबिटैट सेंटर के अमलतास ऑडिटोरियम में मनाया गया I
हाल ही में फाउंडेशन के सचिव श्री पांडा जी का देहांत हो जाने से, परमार्थ परिवार को गहरा आघात पंहुचा क्योंकि गुरु शिष्य परंपरा को आगे ले जाने में, श्री पांडा जी हमेशा से आगे से आगे रहे, उनकी इसी सोच ने परमार्थ परिवार को संगठित किया I  


उनको स्वरांजलि हेतु, २ मिनट का मौन धारण कर, गुरु वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया, तत् पश्चात ध्रुपद संगीत, बिहार बंधू के नाम से प्रचलित "श्री संजीव झा एवं श्री मनीष कुमार" द्वारा भारतीय संगीत की बहु मूल्य प्रतिभा को कार्यक्रम में आए विशेष अतिथियों ने काफी सराहा I पखावज पर इन् बन्धुओ का साथ देने के लिए श्री रमेश चन्द्र जोशी जी का वादन प्रशंसनीय रहा I





सितार की मन मोहक धुन को पेश करती प्रोफेसर सुनीरा कासलीवाल व्यास जी और तबला पर उनका साथ बखूबी निभाते हुए श्री दुर्जय भौमिक जी ने मानो कार्यक्रम में जादू बिखेर दिया हो, क्या बच्चे, क्या उम्रदराज लोगो ने जम  के संगीत समारोह का आनंद उठाया I



परमार्थ फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों को  देश में अधिक से अधिक
जनो तक पहुंचाने का कार्य दूरदर्शन के हम आभारी है और साथ ही Midatouch
Productions  के, जिनके माध्यम से हम आज डिजिटल भारत में अपनी छटा बिखेर पा रहे है, आशा करते है सभी गुरु जनो के साथ साथ युवाओं का भी साथ मिले जिससे हम अपनी विलुप्तता के कगार में आती संगीत, गायन शैलियों को पुनः जीवंत कर सके और उन्हें आज के परिवेश में जन जन तक पहुचाये I


धन्यवाद
अंकुर शरण
www.ankursharan.com
anksharan@gmail.com

















Credentials

Venue                           :  India Habitat Center, New Delhi
Event Coverage           :  Midastouch  Productions (www.midastouchproduction.com)
Media Coverage          :  Durdarshan
Social Networking       :  Articia Studio
Camera Support           :  Bhasker  Joshi
Anchor                         :  Ritesh Mishra
Content Write up         :  Ankur Sharan (www.ankursharan.com ) 

Saturday, March 12, 2016

World Cultural Festival - 2016


विश्व सांस्कृतिक महोत्सव का भव्य आयोजन हमारे भारत का दिल कहे जाने वाले राज्य दिल्ली  में आयोजित तो हुआ पर इसकी गूंज हमारे दिलो के साथ ही विश्व भर में सुनी जा सकती  है।  

हर एक कलाकार के लिए सपना होता है की वो ऐसे मंच पे अपने कला का प्रदर्शन करे जिससे उसकी कला - कौशल की सराहना हो और उसकी प्रस्तुति लोगो के दिलो दिमाग में छा जाए , कुछ ऐसा ही सोच ले कर करीब हम विश्वभर के 35,000 कलाकार एक पारिवारिक समारोह की भांति,  विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के  प्रांगण  में पधारे और हमने एक समूचे विश्व को एक परिवार का रूप दिया - "वसुदेव  कुटुंबकम "

यह आयोजन किसी व्यक्ति विशेष को या धर्म- जाति , राजनीति से ना जोड़ कर यदि हम एक इंसान और इंसानियत की भाषा से समझे तो हम पाएंगे की आज विश्व में
जितनी ईर्ष्या भाव, आलोचनाओं का चलन  तेजी से पनप रहा  है वो हमारे मन मस्तिष्क को कुंठित कर रहा  है, हम खुद को बढ़ाने  के बजाए  दुसरो को गिराने में ज्यादा विश्वास करने लगे है  ।  लोहा जितना मजबूत क्यों न हो, उसे उसका अंश "जंख् (Rust ) " ही उसे मिटा देता है, हद से ज्यादा आलोचना और ईर्ष्या हमे ही खोखला बना देंगी, आज भी हम "Social  Networking " के माध्यम से जुड़े है पर एक हद , एक दायरा तो तय करना ही पड़ेगा - कंही ऐसा न हो, की  "Forward" सोच रखने वाला हमारा समाज कंही Fast  Forward  हो कर ही न रह जाए, समय की सदुपयोग करना और नए विचारो पर कार्य करना आज की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे आज इस महोत्सव के तहत हम सब ने जिया ।  कुछ भी करे, जो आपको अच्छा लगे, जो आपकी अपनी सोच को बल दे , फिर उसे एक आयाम दे, मन को सुखद अनुभव होगा और मन प्रसन्न तो सब कुशल ही कुशल । 

सत्य तो ये है की हम में से ज्यादा तर लोग  अपनी शक्तियों का आंकलन करना ही भूल चुके है, कुछ लोग इतने गरीब है की उनके पास रोटी से ज्यादा कुछ नहीं और कुछ इतने ज्यादा गरीब है की उनके पास पैसे के अलावा कुछ नहीं ।  


कला और कला की समझ रखने वाली  हमारी पीढ़ी विलुप्तता की कगार पे है और हम ही नहीं हर व्यक्ति को अपनी संस्कृति , सांस्कृतिक धरोहर को अपनों के बीच उजागर करते रहना चाहिए और उसी का जीता जाता उदाहरण  विश्व सांस्कृतिक महोत्सव में हुआ, आज भी कितने परिवार ऐसे धरोहर को अपने साथ संजोय हुए है। 1700 कत्थक, 1700 भरतनाट्यम  नित्रयांगनाओ ने जब एक साथ थाप ली तो मानो  ब्रम्हांड हिल गया , हजारो की तादात में जब नगाड़े, वाद यंत्र  बजे तो मानो बादल ही फट पड़ा, ओले और बारिश के फुहारों ने मानो सोच रखा था की आज तांडव मचा ही देंगे, पर होनी को कौन रोक सकता है - विश्व में आज एक इतिहास जो रचने जा रहा था , अटल विश्वास के साथ सम्पूर्ण कलाकारों ने एक जुटता  का प्रदर्शन किया - बादलो के गरजने से, हम कलाकारों के  ने अपने मनोबलो को गिरने नहीं दिया और काले बादल के पीछे से जब  चमकती सूर्य की वो छठा आयी, मानो सब के चेहरों पे पुनः बहार आगयी ।  बस फिर क्या था, एक साथ ध्वनि का शंखनाद हुआ तो फिर वो गूंज यमुना के तट  से आकाश तक सुनी जा सकती थी और उसकी अदभुत प्रसन्ता हम सब के चेहरों पर भली  भाति थी  । 

यह मात्र एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर हमारी ख्याति है जो ये विश्वास दिलाती है की भारत का मूल मंत्र  ही - सांस्कृतिक धरोहर है जिसे  पैसे से कभी तौल नहीं जा सकता, ओछी राजनीति से उचे उठकर  हमे नव युग का पुनः निर्माण करने की परम आवश्यकता है । कार्यक्रम के दौरान एक बात प्रशंसनीय रही की हर एक व्यक्ति विशेष ने अपना कार्य समूर्ण कटिबद्धता से निभाया, कलाकारों ने कला के माध्यम से, तो अभेद security  और कार्यकर्ताओ ने अपनी चौकसी से इसे सफल बनाया । 

 आज हमारी इतनी हैसियत है की विश्व के 150 से ज्यादा देशो ने हम में दिलचस्पी दिखाई और हमारे प्रांगण में अपने कला को प्रदर्शित किया । 

विश्व सांस्कृतिक महोत्सव  वो आग़ाज़ और ऐसा समावेश बना की लाखो मन हर्षित हो गए , और करोणों निगाहो ने इसे website और news में जीवंत होता देखा । हमने पुनः एक  इतिहास रच दिया, ये कोई एक कलाकार  की नहीं, हम उन सब की जीत की कहानी है जो अपने बुलंद हौसलों से दुसरो को भी हौसला देते है और यही सिलसिला हम परस्पर प्यार और सदभावना "वसुदेव  कुटुंबकम " के माध्यम से जन -जन तक पहुचने में सक्षम रहे है ।  कला की सराहना और उनका आदर ही एक सफल समाज की कुंजी है, अपने अनुभवों को हम से बांटे  और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे से आगे बढ़ाएं । 

धन्यवाद 
अंकुर शरण 


Friday, June 19, 2015

योग मात्र व्यायाम नहीं, जीवन जीने का एक सकारात्मक तरीका

अपनों की मुस्कान

आप सब का मेरे गलियारे में  पुनः स्वागत है , हिंदी मात्र एक भाषा नहीं, हमारी मातृ भाषा है I 
ठीक उसी तरह, योग मात्र व्यायाम नहीं, जीवन जीने का एक सकारात्मक तरीका है I 


जनवरी २० १ ३ में उस घटना ने जीवन का रुख ही मोड़ दिया हो मानो। ब्रेन हैमरेज और केवल कुछ मिनट की देरी से मैं उसे खो देता, सोच कर ही रूह काप जाती है। 


अपनों की मुस्कान कितनी एहमियत रखती है, ये मैंने अपने भाई से जाना है। 

हर वक़्त ना हार मानने वाला और उतना ही कुदरत की चोट खाता   यह इंसान अपने आप में एक मिसाल है। जीवन और मौत के बीच में उन् सासों को सुना था और मानो बस एक विश्वास ही था की कैसे अपने भाई को मौत के मुह से खीच लाउ. 

मासूम और सबका चहेता, एक बार फिर मौत को झासा दे कर अपनों के बीच है और अपने बुलंद हौसलों से जल्दी ही अपने दैनिक  जीवन में लौट आएगा। मेरे लिए कोई हीरो नहीं , जो है वो मेरा भाई ही है। जब भी जीवन की प्रेरणा लेनी होती है तो बस उस के साथ बिताये अनुभवों को याद कर लेता हु, उसके पास बैठ के उस्की  हँसी में मुस्कुरा लेता हु। 

जब सुनता हु लोगो के बीच, आपसी पारिवारिक कटुता तो मन खिन्न हो जाता है। रिश्तो की एहमियत ना जाने वाले ये मूर्ख , कभी किसी का भला नहीं कर सकते।  जो भाई भाई के दुश्मन हो जाते है, उन्हें तो जीवन का ज्ञान ही  नहीं मिल पाया। 

इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसकी सोच और हौसला ही होता है, जो गिर के फिर खड़ा हो उसे ही सच्चे माएनो में सफल इंसान कहते है। पर आज के इस कलयुग में इंसान की क़द्र करने वाला है ही कौन, जिसे देखो वही एक दुसरे पर ताने कस रहा है। क्या भला हो सकता है कभी ऐसे लोगो का ?

हमे सफलता प्राप्त करनी है तो दुसरो को हौसला देने का प्रयास करे, ना की उन्हें गिराने का और पीठ पीछे बुराई करने का। प्रभु ने जो इंसानी जीवन दिया है, उसे व्यर्थ ना गवाए। किसी का कुछ नहीं पता, कल कौन अपना आप से दूर हो जाये और आप सिर्फ पश्चताप के आंसू रोये. 

जीवन में मिठास बनाये रखने के लिए, मात्र एक ही उपाए है - खुद को हर हाल में स्वस्थ रखे, स्वस्थ रहने के लिए बहुत जरुरी है की स्वयं का ख्याल सबसे पहले करे, यदि आप स्वस्थ है तभी तो आप अपनों की और दुसरो की मदद कर सकेंगे I निरस्त जीवन का दामन छोड़ कर, वह कार्य करे जिससे आपको ख़ुशी एवं संतुष्टि मिले I तभी हम अपने लिए और दुसरो के लिए जी सकेंगे। 

कुछ लम्हे  दिल के बहुत करीब होते है, यह तस्वीर भी ऐसे ही मेरे दिल के बेहद करीब है। यह तस्वीर हमारे जीवन में घटी उस  घटना के  कुछ  दिनों पूर्व की ही है, कभी सोचा भी नहीं था - की यह  मुस्कान देखने के लिए आँखे   तरस जायेंगी। पर विश्वास है, की इस तस्वीर की अगली कड़ी - फिर से मुस्कान ले कर अपनों के बीच लौट आएगी।

हम लाख उपलब्धियाँ हासिल कर ले, यदि हमारे घर परिवार में कोई अस्वस्थ है तो यकीं माने एक कसक जरूर होती है I एक पौधा भी मुरझा जाता है तो कितनी पीड़ा होती है तो समझे अपनों के स्वास्थय के लिए, अपने लिए हम क्या कर रहे है ? 

ईश्वर का धन्यवाद दे की हमारे हर अंग कार्यरत है , हमे रोज मर्रा की जिंदगी में अपने शरीर से जूझना नहीं पड़ता I कभी किसी ने इस वरदान को नहीं स्वीकारा, बस और, कुछ और पाने की चाहत में भटके जा रहे है I  सब जरुरी है , पर स्वास्थय को दर किनार कर के नहीं I  अपने लिए समय जरूर निकाले, कुछ लिखे, कुछ गुनगुनाये, संगीत सिर्फ सुने नहीं - कुछ अपना योगदान भी दे, कुछ ऐसा करे जिसमे आप का कुछ योगदान हो, जिसे आप अपनी रचना कह सके, फिर देखे की रूह को कितनी सुकून मिलेगी I 

हर चीज पैसे के लिए नहीं की जाती, किन्तु आज सच है की हर व्यक्ति आप से इस कारन जुड़ा है - की आपसे उसे कितना फायदा है I  जब काम खत्म, पैसा हजम - जो आप अपने रस्ते, हम अपने रास्ते I  ये तो हम सब के जीवन में होता रहा है और होता भी रहेगा I  

पर सहज सोच के साथ, जब आप योग से अपने मन , मस्तिष्क को एक केंद्र में ले आएंगे तो वो होगा, जिसे  कभी आप कल्पना भी नहीं कर सकते I मंन की तरंगे कार्यरत होंगी, मंन प्रसन्न रहेगा, सुबह की सूर्य के साथ ऊर्जा आएगी और जिस कार्य में मंन से जुड़ जायेंगे वो देर से सही पर वह आपको सफल बनाएगी I 

योग में बहुत शक्ति होती है, सिर्फ सोचने से नहीं - शरीर को स्वस्थ रखने के लिए, योग ही एक मात्र राह है जो सुखद भविष्य के लिए हमेशा से प्रेरित करता रहा है और करता रहेगा I 

अंतराष्ट्रीय योग दिवस की आप सब को बधाई..
(२१ जून )

योग एक दिशा देता है - भटकती हुई इन्द्रियों को एक सूत्र में पिरोता है, 
एक वेग से आपको अनुशासित होने का गुण सिखाता है I 
स्वछ, निर्मल भाव मन में पैदा करता है, 
सकारत्मक दृष्टिकोण से ही आप नव निर्माण करते है, 
आपसी द्वेष - कलह मिटते है I 
निसंदेह, जब मंन चंंगा, तो कसौटी में गंगा ! 
योग को जीवन में लाये, 
स्वस्थ शरीर और मानसिक विकास के साथ, 
जन जन में उमंग जगाये..

धन्यवाद, 
अंकुर शरण

Thursday, June 18, 2015

Sunday, March 8, 2015

महिला हमारे देश की बिंदी है

महिला दिवस पर सभी महिलाओ का अभिनन्दन और नमन।  

होली का हुड़दंग कर , वृन्दावन से लौटा ही था - कृष्णा के जीवन में माँ यशोदा, रुक्मणी , राधा और उनकी प्यारी गोपियों का क्या महत्व था, यह तो अध्यात्म में लिपिबध है ही और अलबत्ता महिला दिवस की धूम सोशल साइट पर देखा तो मन किया की कुछ अपनी लेख से मेरे अपने जीवन में इनका महत्व को भी लेखांकित करू , वैसे श्रीमती जी ने इस पर भी चुटकी ले ही ली - कम  से कम आज तो चाय खुद बना के पिला ही दो।  
रविवार का दिन , मौसम भी आज थोड़ा सुहाना भी है - अपने बाग़ में बैठा और अपने गलियारों की सैर पर चल दिया, अपने जीवन के कुछ अनूठे रंग आप सब के समक्ष में प्रस्तुत कर रहा हू ।  

अच्छा लगा की लोग अपनों को याद कर रहे है , महिला शब्द आज के परिवेश में उतना ही एहम है जितना घर में और हमारे जीवन में माँ का किरदार होता है । बचपन से माँ एवं बहन के साय में अधिकतम लोगों का जीवन बीतता है, परिवार में कड़ी की भूमिका में निपुण महिला सदा ही आदरणीय रही और रहेंगी भी। 

मेरी दादी जी अपने ज़माने में इलाहबाद की एक कुशल होमियोपैथिक डॉक्टर रही, छोटे बच्चे तो कभी महिलाओ की लम्बी कतार घर के आँगन से गली तक लगी रहती  और साथ ही पूरे  घर को एक सूत्र में पिरोये रखी, आज वो हमारे बीच नहीं है पर ददिहाल का सुख हमने उन्ही से सीखा । 

नानी जी उस वक्त परिवार का साथ निभाती रही जब हमारे नाना जी कस्टम (Customs - Narcotics ) के कार्य के लिए भारतवर्ष के विभिन् सीमाओ पर मौजूद रहते तो नानी ने ही माँ, मौसी जी लोगो का ख्याल रखा  और आज निसंदेह आज वो सभी  एक सफल जीवन जी रही है और हम और हमारे परिवार जन अपनों का ऋण कभी उतार ही नहीं पाएंगे और यही सिलसिला हमारी माँ और अब घर की बाकी महिलाओ का फर्ज बनता है की घर की सांस्कृतिक धरोहर एक परिवार से दूसरे परिवार कैसे जाए और कैसे यह हमारे जीवन और समाज का हिस्सा बने ये निसंदेह हमारी इन्ही महिलाओ पर निर्भर करता है , पिता तो घर का निर्माण मात्र करते  है पर घर का नाम तो घर की महिलाये ही बनाती  है।  

धरती को कितना भी उकेरो,वह अपना अस्तित्व कभी नहीं खोती। दो बून्द जल की फिर से सुखी भूमि को अंकुरित करदेगी। आज समाज में जितनी ग्लानि बढ़ रही है महिलाओ की स्वतंत्रता और सुरक्षा को ले कर  उसमे हम सब का दाइत्व है की महिलाओ का ना केवल  सम्मान करे बल्कि आगे से आगे उनका सहयोग और साथ दे। 

किताबी ज्ञान की धाराओ से लोग आज ऊपर उठ कर साइबर सफर पर चल चुके है, हिन्दी का साथ छोड़ कर अंग्रेजी बीट पर थिरकने लगे है।  आख़िरकार समय जो बदल रहा है पर मानसिकता में अभी भी कंही कमी जरूर है।  ये कमी हम और आप भी दूर कर सकते है, कोई सविधान नहीं,  कोई बड़े बोल नहीं बस एक हिम्मत और अपनों में विशवास महिला सशक्तिकरण को मजबूती देगा। हमारे वर्त्तमान  के लिए हुए निर्णय ही हमारे भविष्य निर्धारण करेंगे , सोच हमारी और  तभी कल हमारा होगा। 

महिला दिवस निसंदेह एक सकारात्मक सोच है -  समाज के उस चेहरे की जिसने एक एहम हिस्सा दिया इस शुभ दिवस को समाज में एक साथ मनाने का।  पर इस सोच को जिन्दा करने के लिए इसे अमल भी करना है। 
ना ही मेरे लिखने से, ना लाइक करने से और ना ही तस्वीर शेयर करने से हम बदलाव ला सकते है - यह हमारी एक अभिव्यक्ति का तरीका तो हो सकता है पर आदत बनाने की जरुरत है।  
महिला हमारे देश की बिंदी है, इनका सम्मान करे। 

आखिर हमारी  कामयाबी के पीछे , किसका हाथ है ?

हिन्दी को जिन्दा रखे, ये हमारी मात्र  भाषा है।
जय हिन्द 
-अंकुर शरण 
८ मार्च २०१५ ( महिला दिवस )



Tuesday, February 10, 2015

पहले आप, पहले आप

दिल्ली तो दिलवालों की नगरी कही जाती रही है और १० फ़रवरी को दिल का आलम ये था मानो, पूरा लखनवी अंदाज में दिल्ली वाले रंग गए हैं - "पहले आप, पहले आप".....!!!

आज तो हद तब हो गयी जब राजनीति से दूर भागने वाले भी भारत पाकिस्तान के स्कोर की तरह - समाचार और इंटरनेट पे रुझान ले रहे थे। इतना तो प्री बोर्ड वाले नहीं घबराए होंगे जितना आज की राजनीति से नेताओ और अभिनेताओं ने सबक ले ली होगी। 

हमने तो बचपन से सुना है - जो होता है अच्छे के लिए पर आज जो हुआ - वो आप के लिए हुआ।  
परिवर्तन ही प्रकति का नियम है।  आज आप और हम कुछ भी सोचे, क्या सही या क्या गलत - पर इंसान को अपना अस्तित्व कभी खोना नहीं चाहिए। इंसान को उसका एहम ही मारता  है और चाहे कोई भी इंसान अपने को कितना भी ऊचा उठा ले, अपने परछाई से भाग नहीं सकता। आज का युवा बातो या जज्बातों को  नहीं - परिवर्तन को चाहता है।   

"या खुदा दोस्तों से बचा , दुश्मनो से तो मैं खुद निपट लूंगा" !!!

स्वस्थ रहे , खुद में मस्त रहे..... 
अच्छे दिन हम खुद ले आएंगे, सारे जन्हा से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा। 
- अंकुर शरण 



Wednesday, December 17, 2014

पानी ने दूध से मित्रता की

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया, जब दूध ने


पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा,मित्र तुमने अपने स्वरुप

का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है अब मैं

भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा, दूध

बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है अब

मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै

चला जाऊँगा और दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र

को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने

लगता है, जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से

मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है पर इस अगाध

प्रेम में थोड़ी सी खटास (निम्बू की दो चार बूँद ) डाल दी जाए

तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं थोड़ी सी मन कI खटास अटूट

प्रेम को भी मिटा सकती ह।।।