Wednesday, March 31, 2010

"सोच का दामन"


जिन्दगी के ऐसे मोड़ पे हु जन्हा से कई राहे निकलती है और अब कोई एक मंजिल तक का सफ़र तये करना है। हम सब के जीवन में ऐसी कशमकश का दौर तो आता ही होगा। संगीत से प्यार करता हु और नौकरी का साथ देता हु। कोशिश तो कर रहा हु की समय का सद उपयोग करू, पर समय है की मुह चुरा के भाग जाता है। आज फिर उसी सोच में बैठा हु और विचार कर रहा हु की क्या हो सकता है।

सोचना नहीं,
बस अब कर गुजरना चाहता हु।
सुनना नहीं, अब कुछ सुनाना चाहता हु।
वक़्त नहीं,
पर वक़्त रहते अब कुछ कर गुजरना चाहता हु।


सोच के दामन में, बहुत देर सो लिया।
पाने की चाहत में, बहुत कुछ खो दिया।
अब कुछ और भी है, जिसे पाना चाहता हु,
अब कुछ कर गुजरना चाहता हु।


हसी भी आती है,
और फिर मुस्कुरा के चुप सा हो जाता हु।
खामोश पलों में , एक धुन बनाना चाहता हु।
मैं बस, कुछ कर गुजरना चाहता हु।


चाहत की इस आँख मिचोनी में,
कब तक छिपते रहेंगे-
मिली है जो ये हसी जिन्दगी,
खुल के बस अब यही कहेंगे।
सोचना नहीं,
अब अपनी सोच को और बढ़ाना चाहता हु,
कुछ कर गुजरना कहता हु।


हर कोशिश में एक आशा छुपी होती है और हर आशा के पीछे एक कोशिश का साथ हमेशा रहता है, शायद तभी हमारी सोच - एक अहम् भूमिका हमारे जीवन में निभाती है अपनी हर कोशिश को मुमकिन करना है तो अपने विचार को अपने साथ हमेशा रखना चाहिए। मैंने अपने कई सपने को सोच के दामन में सुला रखा है, कोशिश कर रहा हु अपने सोच को जगाने का ताकि वो हर मुमकिन प्रयास कर सकू जिससे आने वाले समय के साथ अपनी हर चाहत को साकार कर सकू।