Tuesday, July 22, 2014

जीवन में कभी न कभी चाँद को देख के अक्सर भागती  ज़िंदगी को सुकून मिलजाता है,
कुछ रोज़ की तो बात थी, अक्सर माँ की नाराज़गी या पिता जी के फटकार से भाग कर छत पर चुप चाप उड़ते बादलो से झांकते चाँद को देखता रहता था। 

कभी कोई हवाई जहाज दीखता तो उसे निहारता रहता जब तक वो बादलो में छुप ना जाता। टिमटिमाते तारो को जोड़ना और उसमे अपने नाना जी को खोजना। सुना था की लोग धरती से उठ कर तारो में समां जाते है। 
आज भी जब कभी टहलने निकलता हु तो चाँद भी खोजने से मिलता है। अब तो मकान बड़े हो गए है और चाँद  छोटा।

बचपन के गलियारे से निकल के उसने भी नयी बस्ती जो बना ली है।  जो मुझे अक्सर मिल जाता था आज वो भी मुह कतराने लगा है।  समझ नहीं आता, वो बदल गया है या वो गलियारा। शायद बचपन के गलियारे से नन्ही आँखे जो देखती थी वो दिल को छू जाती थी, तभी तो आज भी बचपन का  प्रतिबिम्ब चाँद में नज़र आ जाता है। 

कभी चुप चाप अकेले चाँद को देखना, आप भी मेरी तरह अपने गलियारे में कुछ पल के लिए जरूर लौट जाओगे।

धन्यवाद,

अंकुर शरण







 

Sunday, July 20, 2014

शब्दों की ताकत


प्रिय पाठकों,

एक बार पुनः मेरे गलियारे में आपका स्वागत है ।  हाल में मैं अपने एक कार्यक्रम के दौरान श्री प्रकाश अय्यर जी से मिला।  एक ऐसी विभूति जिससे मिल के अनुभव हुआ की शब्दों की ताकत कितनी प्रबल हो सकती है। 

उनके वक्तव्य से निकले एक एक  वाक्य ह्रदय को स्पर्श कर गए।   

उनके एक उदाहरण को मैं भी अपने हिंदी पाठको से बाटना चाहूंगा। हम जीवन में बहुत  कुछ कर गुजरना चाहते है , कोशिश भी करते है पर ना जाने कई चीज़  हासिल नहीं कर पाते और अंगूर खट्टे है की भाति उसे छोड़ के कंही और लग जाते है।  बीच मझधार में उस सपने को छोड़ कर और किसी सपनो में रम जाते है।  यही अधिकाँश लोगो की प्रक्रिया होती है , मेरी भी कुछ ऐसी ही है। पर समय है अपने आप में झाकने का और अपने अंदर की ऊर्जा को सही दिशा देने का जिससे स्वयं का हौसला भी बना रहे  और वो हर चीज हासिल कर सके जिसके हम हकदार है । 

थाईलैंड में एक बांस  का पौधा होता है, अंकुरित होने के पश्चात उसकी लम्बाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती और अगले पांच वर्षो में वो ज्यो का त्यों रहता है, पर पांच वर्ष पश्च्चात वही एक इंच का पौधा अगले तीन महीनो में अस्सी फिट का हो जाता है।  सुनने या सोचने में ये मजाक ही लगता है पर खोज में ये तथ्य सत्य है।

हम भी अपने कार्यो में ऐसे ही लिप्त होते है, समय के साथ समझोता कर लेते है, काम में मन नही लगा तो मन को बदल लिया और किसी नौकरी या कोई नए कारोबार में लग गए।  इस उदहारण से बस एक ही सोच मिलती है, अपनी हद को पहचानो और जी जान से एक बार फिर प्रयास करो।  हर एक सुबह आशा से भरी होती है और हर एक शाम अनुभव से, अगर मंजिल हासिल नहीं हुई तो क्या - जज्बा तो उस बास के पौधे सा होना चाहिए। न जाने कब एक दिन किस्मत बदल जाये।  सपने वही पुरे होते है जन्हा सच्ची मेहनत आपको सोने नहीं देती, आपके सवयं शब्दों की ताकत आपकी जड़ों को मजबूत बनाती है।  बस एक कोशिश तो बनती है।  फिर आपकी उचाईयों को दुनिया देखेगी।

निन्यानबे डिग्री तक दूध नहीं उबलता , बस एक डिग्री बढ़ा नहीं की दूध पतीले से बाहर।  एक बंद घडी भी दिन में दो बार सही समय तो दिखा ही देती है।  समय कभी गलत नहीं होता, हमारी सोच गलत या सही होती है। 

हम जो भी कर रहे है , उस में प्रबल विशवास के साथ अपने को झोक ले , सफलता स्वयं आपके साथ कदम से कदम मिला के चलेगी।

दुनिया में कई ऐसे हीरो है जिनसे हम रोज मिलते है , बहुत कुछ सीखते है, बस उसे अमल करने में थोड़े धीमे हो जाते है।  आप भी अपने इर्द गिर्द देखिएगा, कई हीरो दिखाई दे जाएंगे। उनसे मिली प्रेरणा को अपनों से जरूर बांटे, हो सकता है आपकी कहानी से जाने अनजाने  किसी का भला ही हो जाए।

हिन्दी की विचार धारा को विलुप्त ना होने दे, अपनी भाषा अपनी शक्ति है। 

धन्यवाद,

अंकुर शरण