Saturday, March 15, 2014

"होली के रंग, अपनों के संग"


कुछ रंग इतने पक्के है कि छुड़ाने के बाद भी मन कि गहराइयों में समाये हुए हैं।
वो बचपन कि गालियां छूट गयी, वो बचपन के गलियारे से हम आगे निकल गए पर हर होली मे ना जाने क्यों बार बार उन्ही रास्तो पे एक बार लौट आने को दिल चाहता है। तभी तो हम सब आज से ज्यादा बीते कल में और आने वाले कल कि कामना में खोये रहते है।   
मुमकिन नहीं लौट जाना पर आज भी अपने बचपन को छोटे नादान बच्चो में ढूंढ ही लेना और उनके साथ होली के मदमस्त कर देने वाले त्यौहार में सराबोर होना एक फायेदे का सौदा है। 
हमने हर चीज का मोल तो बचपन कि दहलीज लांघने के बाद जाना तभी आज वो ही काम में लगते है जंहा हमे फायदा हो, दुआ सलाम भी उन्ही से करते है जिनसे कोई रिश्ता रखने का फायदा हो।  आज के माहोल के हिसाब से यही सही भी है पर एक कसक तो हम सब के दिल में आज भी होती है कि काश सब मिल के , एक दूसरे से गले मिले। आस पड़ोस में दो कप प्याली चाय ही साथ में पीले। एकता में ही शक्ति है, इसी से हमारे रिश्तो कि बुनियाद पक्की है। 

ये संस्कार जो हमारे बड़ो से  हमे विरासत में मिले है अगर एक छोटे से बदलाव कर हम इन्हे जिन्दा रखे तो
हम तो बदलेंगे ही और हमारी सोच भी फिर से बदलेगी। आज के नकारात्मक विचारो को हमे फिर से गुब्बारों में रंग कि तरह भर कर फोड़ना है , फिर से होलिका में हर उस विचार को जला देना है जो हमारे विचारो को धूमिल करते  है।  कुछ नया करने कि सोच से ही हम परिवर्तन कि उम्मीद कर सकते है, कुछ अब तक हम सब ने किया , इस होली कुछ और जीवन में रंग लाये जाए। 

होली तो एक माध्यम है खुद को रंग में सराबोर कर के अपनी ज़िंदगी को खुशनुमा बनाने का। 
खुशियां ना होली से न दीवाली से, खुशियों का असली त्यौहार है आपसी व्यवहार से।  आप खुश है तो माहोल में वही गुलाल फिर से रंग भर देगा, पिचकारी से निकला पानी सब के दिलों  में छुपे मैल को धो देगा, कुछ दाग तो हम सभी को अछे लगते है, क्योंकि होली के रंग रिश्तो कि बुनियाद फिर से मजबूत करते है। 

इस होली कुछ नया कर जाए, अपनी मासूम बचपन के सदाबहार दिनों को कुछ पल के लिए, फिर से घर के बहार ले आएं। 

आप सभी को होली कि हार्दिक शुभकामनाएँ।

- अंकुर शरण