Monday, October 27, 2008

यादो के सहारे

आदरणीय नाना जी,

आज आपकी बहुत याद आ रही है, आज आपकी फोटो देखा। अपने रूम में रखी, आपका मुस्कुराता चेहरा फ़िर से आँखों के सामने आगया। बहुत दिनों बाद आंसू आगये और गला भर आया। शायद ख़ुद को एकांत की आदत नही है.

कितने साल गुजर गए, पर वो लम्हा आज भी मुझे याद है। बहुत सी बातें होती है जो करना चाहता तो हु पर किस्से कहू। मैं बहुत दुखी हु ख़ुद अपने आप से की मैं इतना लोगो के बारे में क्यूँ सोचता हु। मैं जो कुछ सोचता हु उनमे कंही अपनापन होता है। पर सब यंहा दिखावा है। आप आज इतने दूर हैं पर आज भी बहुत करीब है। आज मैं नौकरी कर रहा हु, दो हफ्तों से लगातार काम ही काम। आज जा के चार दिनों की छुट्टी मिली है। काफ़ी दिनों के बाद कुछ लिखने को दिल किया बस लिखा जा रहा हु दिल का हाल।

अम्मा भी अब बूढी हो रही है, कमजोर भी हो गयी है। कभी भी उनसे आप की बातो का जीकर नही करता हु, वो भी तो एकदम अकेली है। आज भी मन् करता है की सब से मिलू मगर मुमकिन नही है। पंद्रह साल हो गए, और ना जाने कितने साल बीतेंगे पर आप की कमी हमेशा से ही रहेगी।

माँ, मौसी सब अपने जीवन में मस्त है, सब का अपना परिवार हो गया है और सब उसी में सिमित हो गए है। महीने में एक दो बार बात हो ही जाती है। अब तो मेरा किसी से भी मिलने का मन् नही करता है। मैं सिर्फ़ जीना नही चाहता हु, सिर्फ़ अपना समय नही काटना नही चाहता हु। मेरे जीवन का आधा पल तो बीत गया पर मैं यु ही नही जीवन जी सकता। मैं क्या रहा हु और क्या कर सकता हु....ये सवाल आज भी रहते है।

आपकी दिअरी देखा, कुछ चीजे भी लाया हु। मैं आपके जैसा बन तो नही सकता पर उन् खूबियों को जरुर शामिल करने की लगातार कोशिश करता रहता हु जिससे आप का नाम गौरवान्वित होए। इतना कमजोर भी नही की आंसू से लोगो को अपनी संवेदनाओं को उजागर करू, मुझे अपने आनुनसू की कीमत का अंदाजा है।

मुझसे सब प्यार करते है, पर सब का जीवन अपने आप में एक पहेली है। किसी की कुछ नही पता कौन क्या कर रहा है, रिश्ता है तो बस फ़र्ज़ निभा रहे है। एक समय था मैं सब को चिठ्ठी लिखता परउसका आज कोई मोल नही। मैं अपने हाथो से Greeting बनाता, पर वो एक बचपना ही था।

मैं अपनी जिंदगी को एक किताब की तरह रखना चाहता हु, जब कभी मुझे ख़ुद से मिलना हो तो उस दिन, उस तारीख को मैं ख़ुद से मिल सकू। जीवन यादो का नाम है या फ़िर उन् हौसलों का जिनके सहारे हम सब चल रहे है। एक जिंदगी आप की देखी और एक मौत। दोनों ने ही मेरे दिल को छुआ है, और इतना कुछ सिखा दिया की जिन्दगी में कमजोर नही पडूंगा और कभी ऐसा लगा तो, फ़िर से आपको अपने गलियारे में लेता आऊंगा।

आशीर्वाद आपका हमेशा साथ है,

आपका बेटा,

अंकुर

" दूर के ढोल सुहावने होते है "

आज फ़िर से अपने गलियारे में लौट जाने को दिल चाहा। धुंधली सी कुछ तस्वीरे आँखों के सामने छा रही थी। कुछ लोग हमारे से दूर हो कर भी हमे हमेशा याद आते है, और कुछ बेहद करीब होकर भी बहुत दूर चले जाते है। बुरा तो लगता है पर एक कसक भी कंही उठती है की एसा तो कभी नही सोचा था। कहते है न " दूर के ढोल सुहावने होते है "।
अच्छा लगा जब स्वामी जी ने मुझे ख़ुद से बात करने की सलाह दी, ख़ुद से हम दूर जा के एक तन्हाई भरी जिंदगी में खो जाते है और फ़िर अपने आप से कभी मिल भी नही पाते। मैं कई बार ये महसूस किया है जब जब मैं खुद से दूर होता हु, कुछ न कुछ ऐसी बात मुझे चुभ जाती है, जिसका दर्द मैं खुद पे ही निकालता हु।

आज अगर मैं लिखता हु तो वो मेरे मन् के भावो को शब्द देने की कोशिश करता हु, अपने को एहसास दिलाता हु की ये सिर्फ मेरी ही नहीं हम सब की आप बीती है। कुछ है जो प्रकट कर देते हैं और कुछ दिलो में छुपाये महसूस करते रहते है। अपने को बस जगाने की कोशिश करना है, सब अच्छे के लिए होता है।
आज बहुत कुछ बदल गया है, मेरे जीने का अंदाज या कहो मेरा स्वभाव। पर अगर नही बदल पा रहा तो वो है मेरी सोच अपनों के लिए जिन्हें मैं अपने जीवन के बेहद करीब समझता हु। मैं किसी को बदल नही सकता, मैं ख़ुद को भी नही बदल सकता पर कुछ तो जरुर बदल रहा है, क्या, यह मुझे भी नही पता।
बदलाव जीवन का नियम है, पर यह बदलाव हर जगह उचित नहीं। आज हम रिश्तो की एहमियत को क्या वाकई समझते है या बस निभाने की कोशिश मात्र करते है। हम दुसरो के ऊपर ऊँगली उठा तो देते है, दोषारोपण कर तो देते है पर कभी खुद की तरफ उठती उँगलियों को अनदेखा क्यों कर देते है?
मैंने भी कई बार विचार किया, की ये बदलाव है या जीने का नजरिया जो हमे अपनों से दूर लिए जा रहा है। रिश्ते जुड़ने की कम और टूटने की आवाज़ अब कुछ जादा ही सुनाई देने लगी है।
जादा दूर न जा कर, खुद से ये पूछ ने की हिम्मत की तो जवाब मेरे अन्दर ही छुपा था। जब हम अपनों से जादा दुसरो पर यकीं करने लगते है और जाने अनजाने उनसे कुछ जादा उम्मीद कर बैठ ते है। तो ना उम्मीदी ही तो हाथ आएगी। आज हर किसी के पास सब कुछ है, नहीं है तो समय। लोग अपने लिए समय नहीं निकाल पाते है तो भला वो हमारे लिए क्या निकालेंगे। बस एक गहन चिंतन की हम सब को जरुरत है, अपने जीवन को अपने रूप से जियो - अपनी उम्मीदों को खुद पूरा करो, सब यही कंही फिर मिल जायेंगे।

Tuesday, October 21, 2008

अंतर्ध्वनि , अंतरात्मा की आवाज़

अंतर्ध्वनि , अंतरात्मा की आवाज़। ये नाम मेरे जीवन के अभिन्न अंगो में से है। आपकी सोच और विचार जब औरो से मिल जाते है तो उसकी ख़ुशी आप खुद महसूस करते है।
ये हमारी मस्ती की पाठशाला है, जन्हा हम सब ने मिल कर अपने सपने को जीना सिखा है और सीख रहे है जिससे हम सब अपने दिलो में उठ ते उन् सब सपनो को पूरा कर सके।
२००५ से शुरू हुआ सफ़र आज भी जरी है और अपने सफ़र में हम सब ने समाज में, अपने जीवन में आये पहलूँ को गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया है।