इलाहबाद में कुछ ऐसा ही अनुभव बरसो बाद किया, नैनी - जन्हा हम ने बचपन के कई सुखद लम्हे बिठाये । आज उस माहोल से हम कोसो दूर हो चले है पर कंही किसी गलियारे में आज भी वो बचपन वन्ही से अकेला मुझे निहार रहा है।
परिवार के आदरणीय हमारे ताऊ जी की विदाई की वो शाम यादगार बन गयी। अपने परिवार जनों का साथ ऐसे समय में हो तो उससे बढ़ के कोई ख़ुशी नहीं हो सकती। शायद यही परिवार का अर्थ है। दूर हो के भी दिल एक है।
सभी से मुलाकात हुई, सब ने अपना अपना अनुभव अभिवक्त किया। कुछ ऐसे ही गुनगुनाते हुए शाम को अलविदा हमारी ताई जी ने किया।