पौराणिक कहावत है, जब नाश मनुष्य पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है। जब इंसान का अंत समय आता है तो वो कुमार्ग और अशोभनीय कार्यो में लिप्त हो कर अमानवता का परिचय देने लगे तो समझ ले, उस का विनाश निश्चित है, उसकी बुद्धि नष्ठ हो चुकी है। हम ने प्रकर्ति को हर तरह से ललकारा है, और समय है उस परिणाम को आँखों देखि देखना। स्वर्ग को नरक बनाते हुए हाल में उतराखंड में हुई भारी तबाही को हमने देखा। इस त्रासदी ने मानवता और आस्था की नीव हिला दी, क्यूँ हुआ और कैसे हुआ ये हम सब को पता है। गंगा को हम नमन कर पूजते तो है पर सही माएनो में उसकी कदर नहीं करते। कितना विनाशकारी रूप है न माँ का। जो होता है वो किसी के अच्छे के लिए तो किसी के बहुत बुरे के लिए। जो चले गए उनका दुःख है पर जो ये देख देख के मन को कचोट रहे है और ग्लानी भर रहे है, उनके लिए मेरी ये छोटी सी पंक्तिया है।
पहले विवेक मर जाता है।
जो प्रकर्ति से टकराता है,
तभी तो वो मिट्टी में मिल जाता है।
जब नाश मनुष्य पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
पग पग पे खुद कांटे बिछाता है।
जब ना चला कोई जोर खुद का,
तो अपनी करनी पर मन पछताता है।
जब नाश मनुष्य पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
जो चला गया वो दौर कभी ना ,
लौट के वापिस आता है।
मिली है जो ये जिंदगी,
क्यूँ व्यर्थ प्रलोभन में समय बिताता है।
जब नाश मनुष्य पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
गंगा हू, मैं माँ हु तेरी,
तुझे देख के मन भर आता है।
चली थी तुझे पालने को,
पर बस अब और इस दर्द से,
मन उब जाता है।
जब नाश मनुष्य पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
हो सके तो अभी तय कर जाओ,
मानव हो,
अस्तितिव ना गवाओ।
तुम ने जो गंध मचाया है,
मानवता के नाम को तुम्ही ने,
खुद कलंकित कर डाला है।
तभी तो जब नाश मनुष्य पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
- अंकुर शरण
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