गलियारों की सैर,
कोई कल्पना नही बल्की मेरे वो मन के भाव हैं, जिन्हें मैंने महसूस किया है।
गलियारों की सैर, एक ऐसा निर्मल भाव प्रस्तुत करती है...
जिसे जान कर, समझ कर आप भी अपने गलियारों में लौट जाना चाहेंगे!
- अंकुर शरण
Thursday, November 11, 2010
" छिन्द्वारा "
" छिन्द्वारा "
एक छोटा सा हरा भरा कटोरा मानो हरी हरी पत्तियों से भरा पड़ा है। स्वक्ष निर्मल हवा मानो रोम रोम खिला दी हो। एक अजीब सी चमक थी मेरी आँखों में।
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