Saturday, November 13, 2010

सुखी राम - दुखी राम

सुखी राम ओर दुखी राम में सिर्फ एक फर्क है - सोच का। हमने मान लिया की ये जो हो रहा है वही हमारी किसमत है, तो बस उसी का रोना रोते हुए जीवन काट देते है। वही कुछ ऐसे भी है जो हर हाल में खुश रहने के लिए अपने जीवन से समाझोता नहीं करते ओर वो सब कार्य करते है जो उन्होंने चाहा है।

मैं भी सुखी राम का ही भक्त हू। पर ना जाने क्यों कई बार अपने गलियारे में , कई ऐसे दुखी राम भक्तो से मिला हू जो अपने जीवन को एक बोझ समझते हैं। मुझे वाकई में ताज्जुब होता है, जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए नहीं जिंदगी के ओर बस सारी बुराई नज़र आने लगी। हमारे पास ये हो, वो हो, बस इन्ही चक्करों में अपना समय हम व्यर्थ कर देते है, ओर वो नहीं कर पाते जिसे हम उस समय कर सकते थे। ये हम सब की आत्म कथा है।


कई सारे लेखो को मैंने पढ़ा ओर सब का यही तर्क है, आप तब तक दुखी है जब तक आपने खुद को दुखी राम का भक्त मानते रहेंगे। भगवान भी उसी की मदद करता है, जो इंसान खुद के जीवन का सद उपयोग करता है। ये जीवन हमे रोने क लिए नहीं, बल्कि उन् तकलीफों से गुजरते हुए लोगो को उबारने के लिए है- जिन्हें सही राह की जरुरत है। किसी रोते को चुप कराना बहुत कठिन है ओर आज हस्ता हुआ कोई कैसे एक दुसरे को देख सकता है?


हम बस सुख की कामना करते है। सिर्फ कामना से ही पेट भर जाता तो शायद, भगवान हमे पेट देता ही नहीं। हम हर कुछ किसमत के भरोसे नहीं छोड़ सकते। हमे खुद की किसमत रचनी है ओर हम ही अपने भाग्य विधाता है। हमे हर हाल में सुखी रहना है, रहना है ओर बस रहना है। चाहे कितने भी दुःख हमे घेर ले।




अपने कुछ मित्रो के जीवन में ऐसा कुछ देखा की मन् सिहर जाता है। एक की माँ को कुछ लुटेरो ने सिर्फ इस बात पर गोली मार दी की उन्होंने उनका विरोध किया। बचपन से जिनको देखा, उनकी खून से सनी लाश ने काफी आक्रोश भर दिया है, हम सब चुप है - क्योंकि इसी में सब की भलाई समझते है ।




१०-१२ सालो से मेरी एक दोस्त, जिसे मैं स्कूल से जानता हू, हम साथ पढ़े। स्कूल के बाद कभी मौका नही मिला सका मिलने का, कभी बात होती तो बस प्रोग्राम बनता की कभी मिलते है - मैंने भी कितनी बार कहा होगा की कभी घर आता हू, आंटी अंकल से मिलूँगा। पर शायद, नसीब में उनकी सिर्फ फोटो देखना था। उसने मुझसे कुछ ऐसा कहा की वो एहसास मन् को झंझोड़ के रख दिया, " तू मिलना चाहता था न , अब मिल ले" - दोनों की फोटो दिवार पर हार के साथ थी। जून २०१० में आंटी का देहांत हो गया ओर अक्टूबर मे अंकल का, ५०-५५ की आयु में वो तो चले गए पर दिल बहुत दुखी हो जाता है , अपनी दोस्त के जीवन के बारे मे सोच के। हम कहते हैं न जो होता है अछे के लिए होता है, ना जाने इसमें क्या अच्छा है ?


कुछ घटनाये जीवन के प्रति आप की सोच बदल देती है। किसी के बिछड़ने का गम तो हमे सदा रहेगा पर वो इश्वर के हाथ में है , जो आज है उस पर यकीन कर के पूरी मेहनत कर के उस समय को जी लेना। आज हमे दुसरो से ज्यादा खुद की जरुरत है। सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई। जीवन के कटु सत्य को दर्शाती है ये पंक्तियाँ। जब हम दुखी होते है तो खुद को इतना तनहा क्यों समझ लेते है?


हर सवाल का जवाब खुद में ही छिपा होता है। हम सब में एक विद्वान् है पर वो छिपा बैठा है, हम उससे बात ही नहीं करते , हम उससे कुछ पूछते ही नहीं। क्योंकि हमे खुद से ज्यादा आज दुसरो पर यकीं हैं । मैं भी पंडित बन जाता हू ओर कभी तो इतना बोलता हू की सामने वाला बोल ही देता है, कितना बोलते हो। बस वो बात चुभ गयी ओर जब कोई बात तकलीफ दे तो उससे भागना नहीं बल्कि खुद से पूछना चाहिए , की जो मैं बोल रहा हू क्या वाकई में उस इंसान को मेरी बातो या विचारो की जरुरत है?


व्यर्थ में विचार बाटना मुर्खता है, खुद का अपमान है। जब प्यास लगे तभी पानी पियो, हर चीज का वक़्त है। कोशिश करनी चाहिए की इंसान खुद का पेट अपनी मेहनत्त से भरे ना की किसी के भोजन दे देने से। हमे खुद को यह यकीन हर रोज़ दिलाना होगा, जो ये हो रहा है इससे भी अच्छा हो सकता है - बस इस सोच से अपना काम करना होगा।



हमे सुख दुःख से घबराना नहीं है बल्कि यही विश्वास खुद कों दिलाना है, दुखी राम हो या सुखी राम - हर वक़्त की अपनी महिमा है। आने वाला पल, जाने वाला है। हो सके तो इसमें, जिंदगी बितादो - पल जो ये जाने वाला है।
- अंकुर शरण

2 comments:

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छे विचार .

अजित गुप्ता का कोना said...

सही बात है कर्म करने से ही भाग्‍य बनता है। इसलिए सुख अपने पास ही है। आपने ये तो ब्‍लेक एण्‍ड वाइट कर रखा है उससे पढने में तकलीफ होती है इसलिए इसे सुधार लें तो आसानी होगी।