याद है मुझे किस तरह हम बचपन की जन्माष्ठमी को खूब धूम धाम से मानते थे। मिट्टी के खिलोने से अपने लड्डू गोपाल का जीवन दर्शाते थे। तब की फोटो तो नही पर आज भी कुछ छवियाँ मन् में तारो ताजा है।अच्छा लगता है, जब अपने यादगार लम्हों को समेटे रखना।
मेरे लिए हर त्यौहार का अपना महत्त्व है। ये बचपन की आदतें कह ले या फ़िर वो संस्कृति जो आज भी मेरे संग चली आ रही है। मेरे गलियारे की यही तो खासियत है, हर मोड़ पे एक नया सपना एक नयी चाहत लिए चलता रहता हु।
बचपन की याद ताजा हो तो बचपना करने में भी अलग मजा आता है, कुछ इस तरह मैंने लड्डू गोपाल का जन्म दिन मनाया। अपने घर के पास बने मन्दिर में खूब सारे लाल गोपाल के साथ मस्ती की। ये लाल पीले कुछ अधिक ही प्यारे लगे।
अपने जीवन में सब को प्यार चाहिए और ऐसे अवसर पर जो प्यार स्नेह आप को मिले उसे अपना लेना चाहिए। त्यौहार ख़ुद कुछ भी नही वो तो आपका जीवन के प्रति utsah jhalkata है।
हाथी- ghoda paalki, जय Kanhaiya लाल की.....
जय श्री कृष्ण...
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