Tuesday, August 19, 2008

गलियारों की सैर



गलियारों की सैर,
कोई कल्पना नही बल्की मेरे वो मन के भाव हैं, जिन्हें मैंने महसूस किया है।
गलियारों की सैर, एक ऐसा निर्मल भाव प्रस्तुत करती है...
जिसे जान कर, समझ कर आप भी अपने गलियारों में लौट जाना चाहेंगे!
गलियारा एक ऐसा रास्ता जो घर से होता हुआ हमें अपने चार दिवारी से निकालकर घर के विभिन्न हिस्सों से मिलवाता है. बचपन के ऐसे ही गलियारों से होता हुआ आज मैं,
अपने कई जीवन के पहलुओ से मिल पाया.
कभी हँसा भी तो कभी रोया भी, कभी मस्ती हुई तो कभी शरारत भी।

जीवन के ऐसे ही हरे पीले मनमोहक गलियारों से होता हुआ मैंने बहुत से पल ऐसे गुजारे है, जिन्हें मैं अपने आप से एक बार फ़िर मिलाना चाहता हु और इसी बहाने, अपने जीवन से निकल कर बीते दिनों की सैर कर आना चाहता हु। मैं तो हु ही अंकुर, रोज फुटूगा और रोज नए फूलो के साथ अपने गलियारे को मेह्काऊंगा ।


-अंकुर
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