महिला दिवस पर सभी महिलाओ का अभिनन्दन और नमन।
होली का हुड़दंग कर , वृन्दावन से लौटा ही था - कृष्णा के जीवन में माँ यशोदा, रुक्मणी , राधा और उनकी प्यारी गोपियों का क्या महत्व था, यह तो अध्यात्म में लिपिबध है ही और अलबत्ता महिला दिवस की धूम सोशल साइट पर देखा तो मन किया की कुछ अपनी लेख से मेरे अपने जीवन में इनका महत्व को भी लेखांकित करू , वैसे श्रीमती जी ने इस पर भी चुटकी ले ही ली - कम से कम आज तो चाय खुद बना के पिला ही दो।
रविवार का दिन , मौसम भी आज थोड़ा सुहाना भी है - अपने बाग़ में बैठा और अपने गलियारों की सैर पर चल दिया, अपने जीवन के कुछ अनूठे रंग आप सब के समक्ष में प्रस्तुत कर रहा हू ।
अच्छा लगा की लोग अपनों को याद कर रहे है , महिला शब्द आज के परिवेश में उतना ही एहम है जितना घर में और हमारे जीवन में माँ का किरदार होता है । बचपन से माँ एवं बहन के साय में अधिकतम लोगों का जीवन बीतता है, परिवार में कड़ी की भूमिका में निपुण महिला सदा ही आदरणीय रही और रहेंगी भी।
मेरी दादी जी अपने ज़माने में इलाहबाद की एक कुशल होमियोपैथिक डॉक्टर रही, छोटे बच्चे तो कभी महिलाओ की लम्बी कतार घर के आँगन से गली तक लगी रहती और साथ ही पूरे घर को एक सूत्र में पिरोये रखी, आज वो हमारे बीच नहीं है पर ददिहाल का सुख हमने उन्ही से सीखा ।
नानी जी उस वक्त परिवार का साथ निभाती रही जब हमारे नाना जी कस्टम (Customs - Narcotics ) के कार्य के लिए भारतवर्ष के विभिन् सीमाओ पर मौजूद रहते तो नानी ने ही माँ, मौसी जी लोगो का ख्याल रखा और आज निसंदेह आज वो सभी एक सफल जीवन जी रही है और हम और हमारे परिवार जन अपनों का ऋण कभी उतार ही नहीं पाएंगे और यही सिलसिला हमारी माँ और अब घर की बाकी महिलाओ का फर्ज बनता है की घर की सांस्कृतिक धरोहर एक परिवार से दूसरे परिवार कैसे जाए और कैसे यह हमारे जीवन और समाज का हिस्सा बने ये निसंदेह हमारी इन्ही महिलाओ पर निर्भर करता है , पिता तो घर का निर्माण मात्र करते है पर घर का नाम तो घर की महिलाये ही बनाती है।
धरती को कितना भी उकेरो,वह अपना अस्तित्व कभी नहीं खोती। दो बून्द जल की फिर से सुखी भूमि को अंकुरित करदेगी। आज समाज में जितनी ग्लानि बढ़ रही है महिलाओ की स्वतंत्रता और सुरक्षा को ले कर उसमे हम सब का दाइत्व है की महिलाओ का ना केवल सम्मान करे बल्कि आगे से आगे उनका सहयोग और साथ दे।
किताबी ज्ञान की धाराओ से लोग आज ऊपर उठ कर साइबर सफर पर चल चुके है, हिन्दी का साथ छोड़ कर अंग्रेजी बीट पर थिरकने लगे है। आख़िरकार समय जो बदल रहा है पर मानसिकता में अभी भी कंही कमी जरूर है। ये कमी हम और आप भी दूर कर सकते है, कोई सविधान नहीं, कोई बड़े बोल नहीं बस एक हिम्मत और अपनों में विशवास महिला सशक्तिकरण को मजबूती देगा। हमारे वर्त्तमान के लिए हुए निर्णय ही हमारे भविष्य निर्धारण करेंगे , सोच हमारी और तभी कल हमारा होगा।
महिला दिवस निसंदेह एक सकारात्मक सोच है - समाज के उस चेहरे की जिसने एक एहम हिस्सा दिया इस शुभ दिवस को समाज में एक साथ मनाने का। पर इस सोच को जिन्दा करने के लिए इसे अमल भी करना है।
ना ही मेरे लिखने से, ना लाइक करने से और ना ही तस्वीर शेयर करने से हम बदलाव ला सकते है - यह हमारी एक अभिव्यक्ति का तरीका तो हो सकता है पर आदत बनाने की जरुरत है।
महिला हमारे देश की बिंदी है, इनका सम्मान करे।
आखिर हमारी कामयाबी के पीछे , किसका हाथ है ?
हिन्दी को जिन्दा रखे, ये हमारी मात्र भाषा है।
जय हिन्द
-अंकुर शरण
८ मार्च २०१५ ( महिला दिवस )
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