आज फ़िर से अपने गलियारे में लौट जाने को दिल चाहा। धुंधली सी कुछ तस्वीरे आँखों के सामने छा रही थी। कुछ लोग हमारे से दूर हो कर भी हमे हमेशा याद आते है, और कुछ बेहद करीब होकर भी बहुत दूर चले जाते है। बुरा तो लगता है पर एक कसक भी कंही उठती है की एसा तो कभी नही सोचा था। कहते है न " दूर के ढोल सुहावने होते है "।
अच्छा लगा जब स्वामी जी ने मुझे ख़ुद से बात करने की सलाह दी, ख़ुद से हम दूर जा के एक तन्हाई भरी जिंदगी में खो जाते है और फ़िर अपने आप से कभी मिल भी नही पाते। मैं कई बार ये महसूस किया है जब जब मैं खुद से दूर होता हु, कुछ न कुछ ऐसी बात मुझे चुभ जाती है, जिसका दर्द मैं खुद पे ही निकालता हु।
आज अगर मैं लिखता हु तो वो मेरे मन् के भावो को शब्द देने की कोशिश करता हु, अपने को एहसास दिलाता हु की ये सिर्फ मेरी ही नहीं हम सब की आप बीती है। कुछ है जो प्रकट कर देते हैं और कुछ दिलो में छुपाये महसूस करते रहते है। अपने को बस जगाने की कोशिश करना है, सब अच्छे के लिए होता है।
आज बहुत कुछ बदल गया है, मेरे जीने का अंदाज या कहो मेरा स्वभाव। पर अगर नही बदल पा रहा तो वो है मेरी सोच अपनों के लिए जिन्हें मैं अपने जीवन के बेहद करीब समझता हु। मैं किसी को बदल नही सकता, मैं ख़ुद को भी नही बदल सकता पर कुछ तो जरुर बदल रहा है, क्या, यह मुझे भी नही पता।
बदलाव जीवन का नियम है, पर यह बदलाव हर जगह उचित नहीं। आज हम रिश्तो की एहमियत को क्या वाकई समझते है या बस निभाने की कोशिश मात्र करते है। हम दुसरो के ऊपर ऊँगली उठा तो देते है, दोषारोपण कर तो देते है पर कभी खुद की तरफ उठती उँगलियों को अनदेखा क्यों कर देते है?
मैंने भी कई बार विचार किया, की ये बदलाव है या जीने का नजरिया जो हमे अपनों से दूर लिए जा रहा है। रिश्ते जुड़ने की कम और टूटने की आवाज़ अब कुछ जादा ही सुनाई देने लगी है।
जादा दूर न जा कर, खुद से ये पूछ ने की हिम्मत की तो जवाब मेरे अन्दर ही छुपा था। जब हम अपनों से जादा दुसरो पर यकीं करने लगते है और जाने अनजाने उनसे कुछ जादा उम्मीद कर बैठ ते है। तो ना उम्मीदी ही तो हाथ आएगी। आज हर किसी के पास सब कुछ है, नहीं है तो समय। लोग अपने लिए समय नहीं निकाल पाते है तो भला वो हमारे लिए क्या निकालेंगे। बस एक गहन चिंतन की हम सब को जरुरत है, अपने जीवन को अपने रूप से जियो - अपनी उम्मीदों को खुद पूरा करो, सब यही कंही फिर मिल जायेंगे।
No comments:
Post a Comment