Saturday, August 30, 2008

जब जागो तभी सवेरा

अगर हम परिवार की बात करते हैं तो हम हमेशा से अपने माता पिता और भाई बहिन की ही बात करते हैं। यह सोच हमारी आज की है। आज इतने लोग हैं फ़िर भी हम अकेले है इसलिए नही की हम मिल नही पाते बल्कि हम अपनी सोच मिलवा नही पाते। हमने मकडी के जाल की तरह ख़ुद को उस में जकड लिया है। अब हमारा वही एक मात्र दायरा रह गया है।

आज परिवार में सिर्फ़ चार लोगो से परिवार नही होता , परिवार तो आपसी समझ से होता है , आपसी मेल से जिससे आप एक दुसरे को समझ सके। हम क्यों कभी कभी अपने परिवार से दूर हो जाते है? क्यों जब वही परिवार पास होता है तो हम उसकी कदर नही कर पाते हैं , वो रिश्ता कुछ अधुरा सा लगने लगता है। इस की एक मात्र वजह "आपकी सोच " है । यह तो हमे ख़ुद ही देखना है की हमे रिश्तों की समझ है भी या नही। जीवन जीना कोई बड़ी बात नही। अपने अपने जीवन में सब मस्त है पर परिवार के प्रति भी एक सोच की आज जरुरत है।

मैं भी चाहता हु मेरे परिवार में भी वो सारी खुशियाँ हो जो हमे एक दुसरे से जोड़ी रखे। परिवार का हर व्यक्ति एक कड़ी के समान हो। कभी कभी मन् बहुत दुखी भी होता है, जब कोई रिश्तो में दुरिया बना लेता है। जो आज हमे छोड़ गए, उनकी तो बस याद है पर जो आज पास होते हुए भी दूर है उनका क्या?

हम सब को खुश करना जानते है, पर हम ख़ुद को खुश कब कर पायेंगे। कभी ख़ुद से बात करना, जवाब आपको ख़ुद ही से मिलेगा। बोझ को मत ले कर चलो, ये आज नही तो कल गिरा देगा। जिस दिन हम समझ जायेंगे की हम को परिवार की जरुरत है परिवार को हमारी नही उस दिन शायद हमे परिवार का मकसद समझ आएगा। परिवार एक पेड़ की तरह है, हम जितने भी बड़े क्यों न हो जाये, हमे सँभालने वाला हमारा परिवार ही है, जो तने की भांति हमे पूरी तरह से आश्वस्त रखता है की गगन की उचाईयो तक बढता चल। उनके कुछ विचार हमे फूलो की तरह सुगन्धित रखेंगे तो कभी मुरझाए फूलो की तरह कंही गिर जायेंगे। इन्ही सुविचारों का शुभ आशीष हमारे अन्दर संस्कार बन कर जन्म लेता है, जिनसे हम जगत में ख्याति पाते हैं।

संस्कार ख़ुद से नही परिवार से ही हमे मिलता है। हमारे संस्कार ही हमे रिश्तों का ज्ञान देते है। आज जब परिवार ही नही होगा तो संस्कार मिलने का सवाल ही नही। मुझे निराशा इस बात लगती है जिस ख़ुशी को हम बाहर तलाश करते हैं वो कंही और नही हमारी एक मात्र सोच में है। जिस दिन हमने अपनी मनोदशा बदल दी, उस दिन हमे गर्व होगा की हमने इंसान होने का पूरा दाइत्व निभाया। हमने जितना हो सका अपने से लोगो की मदद की क्योंकि अछे कर्मो का फल सिर्फ हम ही नहीं हमारा पूरा परिवार भोगता है। महान बातो से इंसान बड़ा नहीं बनता, बड़ा बनता है बड़ी सोच से और नेक विचार से - "बड़े हो के बड़े बने रहना यह बहुत बड़ी बात है।"

हमारी वास्तविक शिक्षा हमारे परिवार से शुरू होती है बस हम ही है जो खुद को परिवार से क्या समाज से ऊपर समझने की भरी भूल कर बैठते हैं। मैं क्या हु, पहले मुझे यह जानना है। जिस दिन ये ज्ञात हो गया, हम पूर्ण रूप से एक कुशल परिवार का और एक कुशल समाज का निर्माण कर सकेंगे। बस थोडा स्वयं में झाकने की देर है.
जब जागो तभी सवेरा...

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